Story Update : Sunday, December 12, 2010 12:01 AM
बरवर के रामलीला मेले में विराट कवि सम्मेलन
पसगवां। कस्बा बरवर में चल रही रामलीला मेले में विराट कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। इसमें
कवियों ने देश की ज्वलंत समस्याओं पर रचना पाठ किया।
कवि सम्मेलन का शुभारंभ बाराबंकी से पधारे कवि प्रमोद पंकज ने सरस्वती वंदना से किया। लखीमपुर से
आए कवि अतुल मधुकर ने कहा-
‘आती जब आंच कभी अपने वतन पे,
तो छोड़ के कलम तलवारें थाम लेते हैं।
मैगलगंज से पधारे श्रृंगार रस के कवि अरविंद कुमार ने कहा-
नदी की बेकरारी ही समंदर से मिलाती है।
कभी कोयल नहीं गाती, तड़प कोयल की गाती है।
पहाड़ों के ये आंसू हैं, जिन्हें समझे हो तुम झरने,
ये चाहत है पतंगे की उसे हर पल जलाती हैं।
हरदोई के कवि देवेश तिवारी ने सुनाया -
विद्वेष न देश में आए कोई, हम साथ रहे और साथ रहेंगे,
तकरार न प्यार के पास रहे, तुम हाथ बढ़ाओ तो हाथ गहेंगे।
सीतापुर के कवि आलोक सीतापुरी ने कहा-
दोनों मुझे अजीज हैं , दोनों है मेरी जॉ,
उर्दू है मेरी मौसी हिंदी है मेरी मां ।
शायर इशरत तालगामी की इस कविता को भी लोगों ने खूब सराहा-
कल आग मेरे घर में लगाकर गया था जो,
जलने लगा है उसी का घर देख लीजिए।
अमीरनगर से पधारे कवि वीरेश गुप्ता उर्फ गुलशन ने कहा-
जो आंखें देखती हैं उसको सच कहूं कैसे,
सच हकीकत में इन ऑखों को देखना नहीं आता।
लंदनपुर ग्रंट (खीरी) से पधारे कवि रमाकांत चौधर ने कहा-
खुद की लगाई आग में ही जल रहा है आदमी,
मौत के साए में देखो पल रहा है आदमी।
ईमान अपना बेचकर छू रहा है आसमां,
लेकिन अपनी नजरों में ही गिर रहा है आदमी।
इसके अलावा सुनीत बाजपेई, सगीर भारती, पवन शुक्ला (कानपुर) और श्रीकांत सिंह आदि ने काव्य पाठ
किया। श्रीकांत सिंह के संचालन में हुए कवि सम्मेलन की अध्यक्षता रेहान खां ने की। क्षेत्रीय
विधायक कृष्णाराज के मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद रहीं।
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Kunwar Yogendra Bahadur Singh "Alok Sitapuri"
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