कभी यौन दुष्कर्म न हो पहना दो कवच सुरक्षा का।
रक्त बीज बो गई दामिनी महिलाओ की रक्षा का।
सीता को आदर्श मानती भारत की हर नारी है।
फिर क्योँ पश्चिम के लिबास मेँ फिरती बदन उघारी है।
महिलायेँ इस ओर ध्यान देँ आया समय परीक्षा का
रक्त बीज बो गई दामिनी महिलाओँ की रक्षा का।।
टी.बी., टैबलेट, लैपटाप, मोबाइल का उपयोग करेँ।
अनुशासन की लक्ष्मण रेखा का भी उसमेँ योग करेँ ।।
नंगा नाच करे क्योँ रावण लियेँ कटोरा भिक्षा का ।
रक्त बीज बो गई दामिनी महिलाओँ की रक्षा का ।।
शीला का हो शील सुरक्षित मुन्नी अब बदनाम न हो ।
घर लौटे परिवार हमारा बाहर वक्ते शाम न हो ।
संस्थान हो सावधान रुख बदले शिक्षा-दीक्षा का ।
रक्त बीज बो गई दामिनी महिलाओँ की रक्षा का ।।
अपने संस्कार भूले हम क्योँ इतना गुमराह हुए ?
भारतीय लज्जा को तज क्योँ अंग्रेजी वाराह हुए ?
क्या खोया क्या पाया हमने आया समय सरीक्षा का
रक्त बीज बो गई दामिनी महिलाओँ की रक्षा का ।।
बलात्कार के अपराधी को सक्त सजा ए दी जाए ।
बंध्याक्त कर दंड विधा माथे पर अंकित की जाए ।
जहाँ जाए दुनिया मेँ उसको हण्टर मिले उपेक्षा का ।
रक्त बीज बो गई दामिनी महिलाओँ की रक्षा का ।।
-कुँवर योगेन्द्र बहादुर सिँह आलोक सीतापुरी ।
Kunwar Yogendra Bahadur Singh "Alok Sitapuri"
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